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फ़ानी बदायुनी शायरी | शाही शायरी

फ़ानी बदायुनी शेर

83 शेर

दैर में या हरम में गुज़रेगी
उम्र तेरे ही ग़म में गुज़रेगी

फ़ानी बदायुनी




आँख उठाई ही थी कि खाई चोट
बच गई आँख दिल पे आई चोट

फ़ानी बदायुनी




भर के साक़ी जाम-ए-मय इक और ला और जल्द ला
उन नशीली अँखड़ियों में फिर हिजाब आने को है

फ़ानी बदायुनी




बहला न दिल न तीरगी-ए-शाम-ए-ग़म गई
ये जानता तो आग लगाता न घर को मैं

फ़ानी बदायुनी




अपनी जन्नत मुझे दिखला न सका तू वाइज़
कूचा-ए-यार में चल देख ले जन्नत मेरी

फ़ानी बदायुनी




अपनी ही निगाहों का ये नज़्ज़ारा कहाँ तक
इस मरहला-ए-सई-ए-तमाशा से गुज़र जा

फ़ानी बदायुनी




ऐ बे-ख़ुदी ठहर कि बहुत दिन गुज़र गए
मुझ को ख़याल-ए-यार कहीं ढूँडता न हो

फ़ानी बदायुनी




अब नए सुर से छेड़ पर्दा-ए-साज़
मैं ही था एक दुख-भरी आवाज़

फ़ानी बदायुनी




आते हैं अयादत को तो करते हैं नसीहत
अहबाब से ग़म-ख़्वार हुआ भी नहीं जाता

फ़ानी बदायुनी