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ऐ बे-ख़ुदी ठहर कि बहुत दिन गुज़र गए | शाही शायरी
ai be-KHudi Thahr ki bahut din guzar gae

ग़ज़ल

ऐ बे-ख़ुदी ठहर कि बहुत दिन गुज़र गए

फ़ानी बदायुनी

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ऐ बे-ख़ुदी ठहर कि बहुत दिन गुज़र गए
मुझ को ख़याल-ए-यार कहीं ढूँडता न हो

साहिल पे जा लगेगी यूँही कश्ती-ए-हयात
अपना ख़ुदा तो है जो नहीं ना-ख़ुदा न हो

अच्छा हिजाब है कि जब आते हैं ख़्वाब में
फिर फिर के देखते हैं कोई देखता न हो

दिल ही नहीं है जिस में न हो दर्द इश्क़ का
वो दर्द ही नहीं है जो हर दम सिवा न हो