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आँख उठाई ही थी कि खाई चोट | शाही शायरी
aankh uThai hi thi ki khai choT

ग़ज़ल

आँख उठाई ही थी कि खाई चोट

फ़ानी बदायुनी

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आँख उठाई ही थी कि खाई चोट
बच गई आँख दिल पे आई चोट

दर्द-ए-दिल की उन्हें ख़बर क्या हो
जानता कौन है पराई चोट

आई तन्हा न ख़ाना-ए-दिल में
दर्द को अपने साथ लाई चोट

तेग़ थी हाथ में न ख़ंजर था
उस ने क्या जाने क्या लगाई चोट

यूँ न क़ातिल को जब यक़ीं आया
हम ने दिल खोल कर दिखाई चोट

और क्या करते हम बला-कश-ए-ग़म
जो पड़ी दिल पे वो उठाई चोट

कहीं छुपती भी है लगी दिल की
लाख 'फ़ानी' ने गो छुपाई चोट