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दैर में या हरम में गुज़रेगी | शाही शायरी
dair mein ya haram mein guzregi

ग़ज़ल

दैर में या हरम में गुज़रेगी

फ़ानी बदायुनी

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दैर में या हरम में गुज़रेगी
उम्र तेरे ही ग़म में गुज़रेगी

कुछ उमीद-ए-करम में गुज़री उम्र
कुछ उमीद-ए-करम में गुज़रेगी

ज़िंदगी याद-ए-दोस्त है यानी
ज़िंदगी है तो ग़म में गुज़रेगी

अब करम का ये मा-हसल है कि उम्र
याद-ए-अहद-ए-सितम में गुज़रेगी

दिल को शौक़-ए-नशात-ए-वस्ल न छेड़
ग़म में गुज़री है ग़म में गुज़रेगी

हसरत-ए-दम-ब-दम में गुज़री उम्र
इबरत-ए-दम-ब-दम में गुज़रेगी

हश्र कहते हैं जिस को ऐ 'फ़ानी'
वो घड़ी शरह-ए-ग़म में गुज़रेगी