हम शैख़ न लीडर न मुसाहिब न सहाफ़ी
जो ख़ुद नहीं करते वो हिदायत न करेंगे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
आए कुछ अब्र कुछ शराब आए
इस के ब'अद आए जो अज़ाब आए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
हम सहल-तलब कौन से फ़रहाद थे लेकिन
अब शहर में तेरे कोई हम सा भी कहाँ है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
हम परवरिश-ए-लौह-ओ-क़लम करते रहेंगे
जो दिल पे गुज़रती है रक़म करते रहेंगे
We will nourish the pen and tablet; we will tend them ever
We will write what the heart suffers; we will defend them eve
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
हम ऐसे सादा-दिलों की नियाज़-मंदी से
बुतों ने की हैं जहाँ में ख़ुदाइयाँ क्या क्या
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
हम अहल-ए-क़फ़स तन्हा भी नहीं हर रोज़ नसीम-ए-सुब्ह-ए-वतन
यादों से मोअत्तर आती है अश्कों से मुनव्वर जाती है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
हदीस-ए-यार के उनवाँ निखरने लगते हैं
तो हर हरीम में गेसू सँवरने लगते हैं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
हाँ नुक्ता-वरो लाओ लब-ओ-दिल की गवाही
हाँ नग़्मागरो साज़-ए-सदा क्यूँ नहीं देते
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौ-बहार चले
चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़