गड़ सीं मीठा है बोसा तुझ लब का 
इस जलेबी में क़ंद ओ शक्कर है
फ़ाएज़ देहलवी
गुड़ से मीठा है बोसा तुझ लब का 
इस जलेबी में क़ंद-ओ-शक्कर है
फ़ाएज़ देहलवी
हुस्न बे-साख़्ता भाता है मुझे 
सुर्मा अँखियाँ में लगाया न करो
फ़ाएज़ देहलवी
जब सजीले ख़िराम करते हैं 
हर तरफ़ क़त्ल-ए-आम करते हैं
फ़ाएज़ देहलवी
ख़ाक सेती सजन उठा के किया 
इश्क़ तेरे ने सर-बुलंद मुझे
फ़ाएज़ देहलवी
ख़ूब-रू आश्ना हैं 'फ़ाएज़' के 
मिल सभी राम राम करते हैं
फ़ाएज़ देहलवी
मैं गिरफ़्तार हूँ तिरे मुख पर 
जग में नई और कुछ पसंद मुझे
फ़ाएज़ देहलवी
मुँह बाँध कर कली सा न रह मेरे पास तू 
ख़ंदाँ हो कर के गुल की सिफ़त टुक सुख़न में आ
फ़ाएज़ देहलवी
मुझ को औरों से कुछ नहीं है काम 
तुझ से हर दम उमीद-वारी है
फ़ाएज़ देहलवी

