जब सजीले ख़िराम करते हैं 
हर तरफ़ क़त्ल-ए-आम करते हैं 
मुख दिखा छब बना लिबास सँवार 
आशिक़ों को ग़ुलाम करते हैं 
ये चकोरे मिल उस सिरीजन सूँ 
रात दिन अपना काम करते हैं 
यार को आशिक़ान-ए-साहब-फ़न 
एक देखे में राम करते हैं 
गर्दिश-ए-चश्म सूँ सिरीजन सब 
बज़्म में कार-ए-जाम करते हैं 
ये नहीं नेक तौर ख़ूबाँ के 
आश्नाई को आम करते हैं 
जी को करते हैं आशिक़ाँ तस्लीम 
जब वो हँस कर सलाम करते हैं 
मुर्ग़-ए-दिल के शिकार करने कूँ 
ज़ुल्फ़ ओ काकुल को दाम करते हैं 
शोख़ मेरा बुताँ में जब जावे 
उस को अपना इमाम करते हैं 
ख़ूब-रू आश्ना हैं 'फ़ाएज़' के 
मिल सबी राम राम करते हैं
        ग़ज़ल
जब सजीले ख़िराम करते हैं
फ़ाएज़ देहलवी

