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बशीर बद्र शायरी | शाही शायरी

बशीर बद्र शेर

159 शेर

बहुत दिनों से मिरे साथ थी मगर कल शाम
मुझे पता चला वो कितनी ख़ूबसूरत है

बशीर बद्र




बे-वक़्त अगर जाऊँगा सब चौंक पड़ेंगे
इक उम्र हुई दिन में कभी घर नहीं देखा

बशीर बद्र




भला हम मिले भी तो क्या मिले वही दूरियाँ वही फ़ासले
न कभी हमारे क़दम बढ़े न कभी तुम्हारी झिजक गई

बशीर बद्र




भूल शायद बहुत बड़ी कर ली
दिल ने दुनिया से दोस्ती कर ली

बशीर बद्र




बिछी थीं हर तरफ़ आँखें ही आँखें
कोई आँसू गिरा था याद होगा

बशीर बद्र




चाँद सा मिस्रा अकेला है मिरे काग़ज़ पर
छत पे आ जाओ मिरा शेर मुकम्मल कर दो

बशीर बद्र




चराग़ों को आँखों में महफ़ूज़ रखना
बड़ी दूर तक रात ही रात होगी

बशीर बद्र




दादा बड़े भोले थे सब से यही कहते थे
कुछ ज़हर भी होता है अंग्रेज़ी दवाओं में

बशीर बद्र




दिल की बस्ती पुरानी दिल्ली है
जो भी गुज़रा है उस ने लूटा है

बशीर बद्र