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सुब्ह-सवेरे ख़ुशबू पनघट जाएगी | शाही शायरी
subh-sawere KHushbu panghaT jaegi

ग़ज़ल

सुब्ह-सवेरे ख़ुशबू पनघट जाएगी

अज़ीज़ नबील

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सुब्ह-सवेरे ख़ुशबू पनघट जाएगी
हर जानिब क़दमों की आहट जाएगी

सारे सपने बाँध रखे हैं गठरी में
ये गठरी भी औरों में बट जाएगी

क्या होगा जब साल नया इक आएगा?
जीवन-रेखा और ज़रा घट जाएगी

और भला क्या हासिल होगा सहरा से
धूल मिरी पेशानी पर अट जाएगी

कितने आँसू जज़्ब करेगी छाती में
यूँ लगता है धरती अब फट जाएगी

हौले हौले सुब्ह का आँचल फैलेगा
धीरे धीरे तारीकी छट जाएगी

नक़्क़ारे की गूँज में आख़िर-कार 'नबील'
सन्नाटे की बात यूँही कट जाएगी