गुज़रने वाली हवा को बता दिया गया है
कि ख़ुशबुओं का जज़ीरा जला दिया गया है
ज़मीं की आँख का नक़्शा बना दिया गया है
और एक तीर फ़ज़ा में चला दिया गया है
उसी के दम से था रौशन सिपाह-ए-शब का अलम
वो चाँद जिस को ज़मीं में दबा दिया गया है
वो एक राज़! जो मुद्दत से राज़ था ही नहीं
उस एक राज़ से पर्दा उठा दिया गया है
तुम्हें पता नहीं ख़ाना-ब-दोश उम्मीदो?
नया इलाक़ा सर-ए-जाँ बसा दिया गया है
जहाँ हुआ था बसारत का क़त्ल-ए-आम 'नबील'
वहाँ इक आइना-ख़ाना बना दिया गया है
ग़ज़ल
गुज़रने वाली हवा को बता दिया गया है
अज़ीज़ नबील