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अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा शायरी | शाही शायरी

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा शेर

75 शेर

अपनी हस्ती का कुछ एहसास तो हो जाए मुझे
और नहीं कुछ तो कोई मार ही डाले मुझ को

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा




अहमियत का मुझे अपनी भी तो अंदाज़ा है
तुम गए वक़्त की मानिंद गँवा दो मुझ को

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा




आज कम-अज़-कम ख़्वाबों ही में मिल के पी लेते हैं, कल
शायद ख़्वाबों में भी ख़ाली पैमाने टकराएँ लोग

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा




किसी जनम में जो मेरा निशाँ मिला था उसे
पता नहीं कि वो कब उस निशान तक पहुँचा

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा




मैं किस ज़बान में उस को कहाँ तलाश करूँ
जो मेरी गूँज का लफ़्ज़ों से तर्जुमा कर दे

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा




मैं जब भी उस की उदासी से ऊब जाऊँगी
तो यूँ हँसेगा कि मुझ को उदास कर देगा

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा




मैं भी साहिल की तरह टूट के बह जाती हूँ
जब सदा दे के बुलाता है समुंदर मुझ को

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा




मैं अपने जिस्म में रहती हूँ इस तकल्लुफ़ से
कि जैसे और किसी दूसरे के घर में हूँ

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा




मैं अपने आप से टकरा गई थी ख़ैर हुई
कि आ गया मिरी क़िस्मत से दरमियान में वो

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा