इस घर के चप्पे चप्पे पर छाप है रहने वाले की
मेरे जिस्म में मुझ से पहले शायद कोई रहता था
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
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इक वही खोल सका सातवाँ दर मुझ पे मगर
एक शब भूल गया फेरना जादू वो भी
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
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हमें दी जाएगी फाँसी हमारे अपने जिस्मों में
उजाड़ी हैं तमन्नाओं की लाखों बस्तियाँ हम ने
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
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