फूँक देंगे मिरे अंदर के उजाले मुझ को
काश दुश्मन मिरा क़िंदील बना ले मुझ को
एक साया हूँ मैं हालात की दीवार में क़ैद
कोई सूरज की किरन आ के निकाले मुझ को
अपनी हस्ती का कुछ एहसास तो हो जाए मुझे
और नहीं कुछ तो कोई मार ही डाले मुझ को
मैं समुंदर हूँ कहीं डूब न जाऊँ ख़ुद में
अब कोई मौज किनारे पे उछाले मुझ को
तिश्नगी मेरी मुसल्लम है मगर जाने क्यूँ
लोग दे देते हैं टूटे हुए प्याले मुझ को
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ग़ज़ल
फूँक देंगे मिरे अंदर के उजाले मुझ को
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा