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आसिम वास्ती शायरी | शाही शायरी

आसिम वास्ती शेर

26 शेर

कहीं कहीं तो ज़मीं आसमाँ से ऊँची है
ये राज़ मुझ पे खुला सीढ़ियाँ उतरते हुए

आसिम वास्ती




इंतिहाई हसीन लगती है
जब वो करती है रूठ कर बातें

आसिम वास्ती




होंटों को फूल आँख को बादा नहीं कहा
तुझको तिरी अदा से ज़ियादा नहीं कहा

आसिम वास्ती




हम अपने बाग़ के फूलों को नोच डालते हैं
जब इख़्तिलाफ़ कोई बाग़बाँ से होता है

आसिम वास्ती




ग़लत-रवी को तिरी मैं ग़लत समझता हूँ
ये बेवफ़ाई भी शामिल मिरी वफ़ा में है

आसिम वास्ती




बना रखा है मंसूबा कई बरसों का तू ने
अगर इक दिन अचानक तुझको मरना पड़ गया तो

आसिम वास्ती




बदल गया है ज़माना बदल गई दुनिया
न अब वो मैं हूँ मिरी जाँ न अब वो तू तू है

आसिम वास्ती




अजीब शोर मचाने लगे हैं सन्नाटे
ये किस तरह की ख़मोशी हर इक सदा में है

आसिम वास्ती