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होंटों को फूल आँख को बादा नहीं कहा | शाही शायरी
honTon ko phul aankh ko baada nahin kaha

ग़ज़ल

होंटों को फूल आँख को बादा नहीं कहा

आसिम वास्ती

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होंटों को फूल आँख को बादा नहीं कहा
तुझको तिरी अदा से ज़ियादा नहीं कहा

बरता गया हूँ सिर्फ़ किसी सैर की तरह
तूने मुझे सफ़र का इरादा नहीं कहा

कहता तो हूँ तुझे मैं गुल-ए-ख़ुश-नुमा मगर
ख़ुश रंग मौसमों का लबादा नहीं कहा

रहते हैं सिर्फ़ तंग-नज़र लोग जिस जगह
उस शहर-ए-बे-कराँ को कुशादा नहीं कहा

बाँधा हर इक ख़याल बड़ी सादगी के साथ
लेकिन कोई ख़याल भी सादा नहीं कहा

मीरी बिसात पर तो सभी बादशाह हैं
मैंने कभी किसी को पियादा नहीं कहा

वो आसमाँ मिज़ाज मुसाफ़िर हूँ आज तक
मैंने तिरी ज़मीन को जादा नहीं कहा