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देर तक चंद मुख़्तसर बातें | शाही शायरी
der tak chand muKHtasar baaten

ग़ज़ल

देर तक चंद मुख़्तसर बातें

आसिम वास्ती

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देर तक चंद मुख़्तसर बातें
उस से कीं मैं ने आँख भर बातें

तू मिरे पास जब नहीं होता
तुझ से करता हूँ किस क़दर बातें

कैसी बेचारगी से करते हैं
बे-असर लोग बा-असर बातें

देख बच्चों से गुफ़्तुगू कर के
कैसी होतीं हैं बे-ज़रर बातें

सुन कभी बे-ख़ुदी में करते हैं
बे-ख़बर लोग बा-ख़बर बातें

उस की आदत है बात करने की
वो करेगा इधर उधर बातें

इंतिहाई हसीन लगती है
जब वो करती है रूठ कर बातें

आ मुझे सुन कि हो तुझे मालूम
कैसी होती हैं ख़ूब-तर बातें

सहल कट जाए ये तवील सफ़र
और कर मेरे हम-सफ़र बातें

कोई सुनता न हो कहीं 'आसिम'
यूँ न कर उस से फ़ोन पर बातें