आएगी हम को रास न यक-रंगी-ए-ख़ला
अहल-ए-ज़मीं हैं हम हमें दिन रात चाहिए
अंजुम रूमानी
आज का झगड़ा आज चुका
कल की बातें कल पर टाल
अंजुम रूमानी
और कुछ दिन ख़राब हो लीजे
सूद अपना है इस ज़ियाँ में अभी
अंजुम रूमानी
देखोगे तो आएगी तुम्हें अपनी जफ़ा याद
ख़ामोश जिसे पाओगे ख़ामोश न होगा
अंजुम रूमानी
देते नहीं सुझाई जो दुनिया के ख़त्त-ओ-ख़ाल
आए हैं तीरगी में मगर रौशनी से हम
अंजुम रूमानी
दिल से उठता है सुब्ह-ओ-शाम धुआँ
कोई रहता है इस मकाँ में अभी
अंजुम रूमानी
जब तक कि हैं ज़माने में हम से ख़राब लोग
मस्जिद कहीं कहीं कोई मय-ख़ाना चाहिए
अंजुम रूमानी
किस की जबीं पे हैं ये सितारे अरक़ अरक़
किस के लहू से चाँद का दामन है दाग़ दाग़
अंजुम रूमानी
किसी भी हाल में राज़ी नहीं है दिल हम से
हर इक तरह का ये काफ़िर बहाना रखता है
अंजुम रूमानी