जाए ख़िरद नहीं है कि फ़रज़ाना चाहिए
हू का मक़ाम है कोई दीवाना चाहिए
है इस में क़ैद-ए-शहर न वीराना चाहिए
बहर-ए-फ़राग़ तब-ए-फ़क़ीराना चाहिए
गुंजाइश-ए-तसव्वुर-ए-यक-लफ़्ज़ भी नहीं
याँ हर किसी के वास्ते अफ़्साना चाहिए
याँ हर क़दम है महशर-ए-इम्कान-ए-नौ-ब-नौ
याँ हर क़दम पे सज्दा-ए-शुकराना चाहिए
जब तक कि हैं ज़माने में हम से ख़राब लोग
मस्जिद कहीं कहीं कोई मय-ख़ाना चाहिए
मालूम है ख़ुदा को जो हालत दिलों की है
ऐ शैख़ हम फ़क़ीरों पे फ़तवा न चाहिए
रखते हैं 'अंजुम' आप जो औरों के वास्ते
अपने लिए भी तो वही पैमाना चाहिए
ग़ज़ल
जाए ख़िरद नहीं है कि फ़रज़ाना चाहिए
अंजुम रूमानी