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है जो तासीर सी फ़ुग़ाँ में अभी | शाही शायरी
hai jo tasir si fughan mein abhi

ग़ज़ल

है जो तासीर सी फ़ुग़ाँ में अभी

अंजुम रूमानी

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है जो तासीर सी फ़ुग़ाँ में अभी
लोग बाक़ी हैं कुछ जहाँ में अभी

दिल से उठता है सुब्ह-ओ-शाम धुआँ
कोई रहता है इस मकाँ में अभी

साथ है एक उम्र का लेकिन
कश्मकश सी है जिस्म-ओ-जाँ में अभी

मर न रहिए तो और क्या कीजे
जान है जिस्म-ए-ना-तावाँ में अभी

और कुछ दिन ख़राब हो लीजे
सूद अपना है इस ज़ियाँ में अभी

वो मनाज़िर मिरी निगाह में हैं
जो नहीं वहम में गुमाँ में अभी

नहीं फ़ारिग़ ज़मीन से 'अंजुम'
काम बाक़ी है आसमाँ में अभी