बड़ा आज़ार-ए-जाँ है वो अगरचे मेहरबाँ है वो 
अगरचे मेहरबाँ है वो बड़ा आज़ार-ए-जाँ है वो
अनीस अंसारी
बना कर रख तू घर अच्छा रहेगा 
तू मालिक बन किराए-दार क्यूँ है
अनीस अंसारी
एक ग़म होता तो सीने से लगा लेता कोई 
ग़म का अम्बार उठाने पे न पहुँचा आख़िर
अनीस अंसारी
हर एक शख़्स तुम्हारी तरह नहीं होता 
कोई किसी से मोहब्बत कहाँ करे कैसे
अनीस अंसारी
हिज्र के छोटे गाँव से हम ने शहर-ए-वस्ल को हिजरत की 
शहर-ए-वस्ल ने नींद उड़ा कर ख़्वाबों को पामाल किया
अनीस अंसारी
हिज्र में वैसे भी आती है मुसीबत जान पर 
पर रक़ीबों की अलग है ख़ंदा-कारी हाए हाए
अनीस अंसारी
जो परिंदे उड़ नहीं सकते अब उन की ख़ैर हो 
आने वाला है इसी जानिब शिकारी हाए हाए
अनीस अंसारी
कभी दरवेश के तकिया में भी आ कर देखो 
तंग-दस्ती में भी आराम मयस्सर निकला
अनीस अंसारी
लाश क़ातिल ने खुली फेंक दी चौराहे पर 
देखने वाला कोई घर से न बाहर निकला
अनीस अंसारी

