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जहाँ दर था वहाँ दीवार क्यूँ है | शाही शायरी
jahan dar tha wahan diwar kyun hai

ग़ज़ल

जहाँ दर था वहाँ दीवार क्यूँ है

अनीस अंसारी

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जहाँ दर था वहाँ दीवार क्यूँ है
अलग नक़्शे से ये मे'मार क्यूँ है

ख़ुदा आज़ाद था हाकिम की हद से
ख़ुदा के शहर में सरकार क्यूँ है

बहुत आसान है मिल-जुल के बहना
नदी और धार में पैकार क्यूँ है

हज़ारों रंग के फूलों से खिंच कर
बना है शहद तो बेकार क्यूँ है

किसी भी सम्त से आ कर परिंदे
सजाएँ झील तो आज़ार क्यूँ है

तिरी महफ़िल में सब बैठे हैं आ कर
हमारा बैठना दुश्वार क्यूँ है

बना कर रख तू घर अच्छा रहेगा
तू मालिक बन किराए-दार क्यूँ है

तुम्हारे साथ हम आगे बढ़े थे
हमारी पीठ पर तलवार क्यूँ है

ख़ुदा से क्या रक़ाबत है सनम की
रह-ए-मस्जिद नज़र में ख़ार क्यूँ है

इबारत में न कर तहरीफ़ बेजा
हमारे नाम से बेज़ार क्यूँ है

परिंदे को जो मौक़ा दो दिखा दे
बंधे पर का सफ़र लाचार क्यूँ है

पड़ोसी हो तो फल या फूल लाते
तुम्हारे हाथ में हथियार क्यूँ है

ज़मीं फैली हुई है आसमाँ तक
बस इक टुकड़े पे यूँ तकरार क्यूँ है