चाँद भी निकला सितारे भी बराबर निकले
मुझ से अच्छे तो शब-ए-ग़म के मुक़द्दर निकले
अहमद मुश्ताक़
अब शुग़्ल है यही दिल-ए-ईज़ा-पसंद का
जो ज़ख़्म भर गया है निशाँ उस का देखना
अहमद मुश्ताक़
चुप कहीं और लिए फिरती थी बातें कहीं और
दिन कहीं और गुज़रते थे तो रातें कहीं और
अहमद मुश्ताक़
धुएँ से आसमाँ का रंग मैला होता जाता है
हरे जंगल बदलते जा रहे हैं कार-ख़ानों में
अहमद मुश्ताक़
दिल भर आया काग़ज़-ए-ख़ाली की सूरत देख कर
जिन को लिखना था वो सब बातें ज़बानी हो गईं
अहमद मुश्ताक़
दिल फ़सुर्दा तो हुआ देख के उस को लेकिन
उम्र भर कौन जवाँ कौन हसीं रहता है
अहमद मुश्ताक़
दुख के सफ़र पे दिल को रवाना तो कर दिया
अब सारी उम्र हाथ हिलाते रहेंगे हम
अहमद मुश्ताक़
एक लम्हे में बिखर जाता है ताना-बाना
और फिर उम्र गुज़र जाती है यकजाई में
अहमद मुश्ताक़
गुम रहा हूँ तिरे ख़यालों में
तुझ को आवाज़ उम्र भर दी है
अहमद मुश्ताक़