ऐसे डरे हुए हैं ज़माने की चाल से
घर में भी पाँव रखते हैं हम तो सँभाल कर
आदिल मंसूरी
आवाज़ की दीवार भी चुप-चाप खड़ी थी
खिड़की से जो देखा तो गली ऊँघ रही थी
आदिल मंसूरी
बिस्मिल के तड़पने की अदाओं में नशा था
मैं हाथ में तलवार लिए झूम रहा था
आदिल मंसूरी
चुप-चाप बैठे रहते हैं कुछ बोलते नहीं
बच्चे बिगड़ गए हैं बहुत देख-भाल से
आदिल मंसूरी
दरिया के किनारे पे मिरी लाश पड़ी थी
और पानी की तह में वो मुझे ढूँड रहा था
आदिल मंसूरी
दरिया की वुसअतों से उसे नापते नहीं
तन्हाई कितनी गहरी है इक जाम भर के देख
आदिल मंसूरी
दरवाज़ा बंद देख के मेरे मकान का
झोंका हवा का खिड़की के पर्दे हिला गया
आदिल मंसूरी
दरवाज़ा खटखटा के सितारे चले गए
ख़्वाबों की शाल ओढ़ के मैं ऊँघता रहा
आदिल मंसूरी
गिरते रहे नुजूम अंधेरे की ज़ुल्फ़ से
शब भर रहीं ख़मोशियाँ सायों से हम-कनार
आदिल मंसूरी