सरहदें अच्छी कि सरहद पे न रुकना अच्छा
सोचिए आदमी अच्छा कि परिंदा अच्छा
इरफ़ान सिद्दीक़ी
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हमारा ख़ून का रिश्ता है सरहदों का नहीं
हमारे ख़ून में गँगा भी चनाब भी है
कँवल ज़ियाई
मोहब्बत की तो कोई हद, कोई सरहद नहीं होती
हमारे दरमियाँ ये फ़ासले, कैसे निकल आए
ख़ालिद मोईन
जैसे दो मुल्कों को इक सरहद अलग करती हुई
वक़्त ने ख़त ऐसा खींचा मेरे उस के दरमियाँ
मोहसिन ज़ैदी
ज़मीं को ऐ ख़ुदा वो ज़लज़ला दे
निशाँ तक सरहदों के जो मिटा दे
परवीन कुमार अश्क