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बहार शायरी | शाही शायरी

बहार

41 शेर

मैं ने देखा है बहारों में चमन को जलते
है कोई ख़्वाब की ताबीर बताने वाला

अहमद फ़राज़




चमन में रहने वालों से तो हम सहरा-नशीं अच्छे
बहार आ के चली जाती है वीरानी नहीं जाती

we desert dwellers have a stable state
compared to those that in gardens stay

अख़्तर शीरानी




शाख़ों से बर्ग-ए-गुल नहीं झड़ते हैं बाग़ में
ज़ेवर उतर रहा है उरूस-ए-बहार का

अमीर मीनाई




क्या ख़बर मुझ को ख़िज़ाँ क्या चीज़ है कैसी बहार
आँखें खोलीं आ के मैं ने ख़ाना-ए-सय्याद में

अमीरुल्लाह तस्लीम




ख़िज़ाँ का भेस बना कर बहार ने मारा
मुझे दो-रंगी-ए-लैल-ओ-नहार ने मारा

आरज़ू लखनवी




ये सोचते ही रहे और बहार ख़त्म हुई
कहाँ चमन में नशेमन बने कहाँ न बने

i kept contemplating, spring came and went away
where in the garden should I make my nest today

असर लखनवी




बहार चाक-ए-गिरेबाँ में ठहर जाती है
जुनूँ की मौज कोई आस्तीं में होती है

अज़ीज़ हामिद मदनी