बहार दर्द भरा इक़्तिबास छोड़ गई
हर इक शजर का बदन बे-लिबास छोड़ गई
तौक़ीर अब्बास
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छोड़ आया था मेज़ पर चाय
ये जुदाई का इस्तिआरा था
तौक़ीर अब्बास
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लहू मेरी नसों में भी कभी का जम चुका था
बदन पर बर्फ़ को ओढ़े नदी भी सो रही थी
तौक़ीर अब्बास
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मेरी आँखों में आ के राख हुआ
जाने किस देस का सितारा था
तौक़ीर अब्बास
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फिर यही बात न मैं भूल सका
मैं उसे भूल गया था इक दिन
तौक़ीर अब्बास
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वक़्त कर देगा फ़ैसला इस का
कौन सच्चा है कौन झूटा है
तौक़ीर अब्बास
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