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अपने मंज़र से जुदा था इक दिन | शाही शायरी
apne manzar se juda tha ek din

ग़ज़ल

अपने मंज़र से जुदा था इक दिन

तौक़ीर अब्बास

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अपने मंज़र से जुदा था इक दिन
पानी सहरा में खड़ा था इक दिन

नींद उड़ते हुए क़ालीन पे थी
सामने शहर-ए-बला था इक दिन

कई सदियों में नहीं आएगा
उस ने ख़त में जो लिखा था इक दिन

फिर यही बात न मैं भूल सका
मैं उसे भूल गया था इक दिन

इक मसर्रत भरा दिन राख हुआ
हाथ से फूल गिरा था इक दिन

झिलमिलाती हुई लौ याद करो
कोई इज़हार हुआ था इक दिन

आँख पानी में घिरी है अब तक
जाने क्या उस पे बना था इक दिन