चश्म-ए-तर ने बहा के जू-ए-सरिश्क
मौज-ए-दरिया को धार पर मारा
शाद लखनवी
हर एक जवाहर बेश-बहा चमका तो ये पत्थर कहने लगा
जो संग तिरा वो संग मिरा तू और नहीं मैं और नहीं
शाद लखनवी
इस से बेहतर और कह लेंगे अगर ज़िंदा हैं 'शाद'
खो गया पहला जो वो दीवान क्या था कुछ न था
शाद लखनवी
जब जीते-जी न पूछा पूछेंगे क्या मरे पर
मुर्दे की रूह को भी घर से निकालते हैं
शाद लखनवी
जवानी से ज़ियादा वक़्त-ए-पीरी जोश होता है
भड़कता है चराग़-ए-सुब्ह जब ख़ामोश होता है
passion runneth stronger in dotage than in youth
the flame flickers burning brighter ere it dies forsooth
शाद लखनवी
ख़ुदा का डर न होता गर बशर को
ख़ुदा जाने ये बंदा क्या न करता
शाद लखनवी
मुश्किल में कब किसी का कोई आश्ना हुआ
तलवार जब गले से मिली सर जुदा हुआ
शाद लखनवी
न तड़पने की इजाज़त है न फ़रियाद की है
घुट के मर जाऊँ ये मर्ज़ी मिरे सय्याद की है
शाद लखनवी
पानी पानी हो ख़जालत से हर इक चश्म-ए-हबाब
जो मुक़ाबिल हो मिरी अश्क भरी आँखों से
शाद लखनवी