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शाद आरफ़ी शायरी | शाही शायरी

शाद आरफ़ी शेर

11 शेर

देख कर शाइ'र ने उस को नुक्ता-ए-हिकमत कहा
और बे-सोचे ज़माने ने उसे ''औरत'' कहा

शाद आरफ़ी




जब चली अपनों की गर्दन पर चली
चूम लूँ मुँह आप की तलवार का

शाद आरफ़ी




जहान-ए-दर्द में इंसानियत के नाते से
कोई बयान करे मेरी दास्ताँ होगी

शाद आरफ़ी




कहीं फ़ितरत बदल सकती है नामों के बदलने से
जनाब-ए-शैख़ को मैं बरहमन कह दूँ तो क्या होगा

शाद आरफ़ी




कटती है आरज़ू के सहारे पे ज़िंदगी
कैसे कहूँ किसी की तमन्ना न चाहिए

शाद आरफ़ी




नहीं है इंसानियत के बारे में आज भी ज़ेहन साफ़ जिन का
वो कह रहे हैं कि जिस से नेकी करोगे उस से बदी मिलेगी

शाद आरफ़ी




रंग लाएगी हमारी तंग-दस्ती एक दिन
मिस्ल-ए-ग़ालिब 'शाद' गर सब कुछ उधार आता गया

शाद आरफ़ी




रफ़्ता रफ़्ता मेरी अल-ग़रज़ी असर करती रही
मेरी बे-परवाइयों पर उस को प्यार आता गया

शाद आरफ़ी




'शाद' ग़ैर-मुमकिन है शिकवा-ए-बुताँ मुझ से
मैं ने जिस से उल्फ़त की उस को बा-वफ़ा पाया

शाद आरफ़ी