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सरवत ज़ेहरा शायरी | शाही शायरी

सरवत ज़ेहरा शेर

14 शेर

अब तो सँवारने के लिए हिज्र भी नहीं
सारा वबाल ले के ग़ज़ल कर दिया गया

सरवत ज़ेहरा




बस एक बार याद ने तुम्हारा साथ छू लिया
फिर इस के बाद तो कई जमाल जागते रहे

सरवत ज़ेहरा




बिंत-ए-हव्वा हूँ मैं ये मिरा जुर्म है
और फिर शाएरी तो कड़ा जुर्म है

सरवत ज़ेहरा




बिंत-ए-हव्वा हूँ मैं ये मिरा जुर्म है
और फिर शाएरी तो कड़ा जुर्म है

सरवत ज़ेहरा




दिल के दरिया ने किनारों से मोहब्बत कर ली
तेज़ बहता है मगर कम नहीं होने पाता

सरवत ज़ेहरा




जाने वाले को चले जाना है
फिर भी रस्मन ही पुकारा जाए

सरवत ज़ेहरा




जो सारा दिन मिरे ख़्वाबों को रेज़ा रेज़ा करते हैं
मैं उन लम्हों को सी कर रात का बिस्तर बनाती हूँ

सरवत ज़ेहरा




कहाँ पे खोलोगे दर्द अपना किसे कहोगे
कहीं छुपाओ, ये हाल ले कर कहाँ चले हो

सरवत ज़ेहरा




कैसे बुझाएँ कौन बुझाए बुझे भी क्यूँ
इस आग को तो ख़ून में हल कर दिया गया

सरवत ज़ेहरा