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बे-तहाशा उसे सोचा जाए | शाही शायरी
be-tahasha use socha jae

ग़ज़ल

बे-तहाशा उसे सोचा जाए

सरवत ज़ेहरा

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बे-तहाशा उसे सोचा जाए
ज़ख़्म को और कुरेदा जाए

जाने वाले को चले जाना है
फिर भी रस्मन ही पुकारा जाए

हम ने माना कि कभी पी ही नहीं
फिर भी ख़्वाहिश कि सँभाला जाए

आज तन्हा नहीं जागा जाता
रात को साथ जगाया जाए

हर्फ़ लिखना ही नहीं काफ़ी है
आओ अब हर्फ़ मिटाया जाए