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सरफ़राज़ नवाज़ शायरी | शाही शायरी

सरफ़राज़ नवाज़ शेर

11 शेर

आईना चुपके से मंज़र वो चुरा लेता है
तू सजाता है बदन जब कभी उर्यानी से

सरफ़राज़ नवाज़




बदन-सराए में ठहरा हुआ मुसाफ़िर हूँ
चुका रहा हूँ किराया मैं चंद साँसों का

सरफ़राज़ नवाज़




बे-सदा सी किसी आवाज़ के पीछे पीछे
चलते चलते मैं बहुत दूर निकल जाता हूँ

सरफ़राज़ नवाज़




हम अपने शहर से हो कर उदास आए थे
तुम्हारे शहर से हो कर उदास जाना था

सरफ़राज़ नवाज़




इश्क़ अदब है तो अपने आप आए
गर सबक़ है तो फिर पढ़ा मुझ को

सरफ़राज़ नवाज़




ख़ुदा करे कि वही बात उस के दिल में हो
जो बात कहने की हिम्मत जुटा रहा हूँ मैं

सरफ़राज़ नवाज़




कितना दुश्वार है इक लम्हा भी अपना होना
उस को ज़िद है कि मैं हर हाल में उस का हो जाऊँ

सरफ़राज़ नवाज़




मिरे बग़ैर कोई तुम को ढूँडता कैसे
तुम्हें पता है तुम्हारा पता रहा हूँ मैं

सरफ़राज़ नवाज़




सफ़र कहाँ से कहाँ तक पहुँच गया मेरा
रुके जो पाँव तो काँधों पे जा रहा हूँ मैं

सरफ़राज़ नवाज़