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यूँ उड़ाती है जो हवा मुझ को | शाही शायरी
yun uDati hai jo hawa mujhko

ग़ज़ल

यूँ उड़ाती है जो हवा मुझ को

सरफ़राज़ नवाज़

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यूँ उड़ाती है जो हवा मुझ को
पहले हल्का बहुत किया मुझ को

मुद्दतों से यहाँ मुक़फ़्फ़ल हूँ
आ कभी आ के खटखटा मुझ को

आख़िरी वक़्त आ गया है क्या
दे रहे हैं सभी दुआ मुझ को

तुझ तक आने कभी नहीं देगा
मेरे हिस्से का दायरा मुझ को

रोज़-मर्रा की इस कहानी में
कोई किरदार तो बना मुझ को

इश्क़ अदब है तो अपने आप आए
गर सबक़ है तो फिर पढ़ा मुझ को

कर के सौदा जो पाँव का बैठा
दे गया कोई रास्ता मुझ को

वो कोई आम सा ही जुमला था
तेरे मुँह से बुरा लगा मुझ को