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परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़ शायरी | शाही शायरी

परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़ शेर

38 शेर

आबदीदा हो के वो आपस में कहना अलविदा'अ
उस की कम मेरी सिवा आवाज़ भर्राई हुई

परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़




अगर लोहे के गुम्बद में रखेंगे अक़रबा उन को
वहीं पहुँचाएगा आशिक़ किसी तदबीर से काग़ज़

परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़




अहल-ए-दुनिया बावले हैं बावलों की तू न सुन
नींद उड़ाता हो जो अफ़्साना उस अफ़्साना से भाग

परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़




ऐ सबा चलती है क्यूँ इस दर्जा इतराई हुई
उड़ गई काफ़ूर बन बन कर हया आई हुई

परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़




बाल रुख़्सारों से जब उस ने हटाए तो खुला
दो फ़रंगी सैर को निकले हैं मुल्क-ए-शाम से

परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़




बद-क़िस्मतों को गर हो मयस्सर शब-ए-विसाल
सूरज ग़ुरूब होते ही ज़ाहिर हो नूर-ए-सुब्ह

परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़




भेज तो दी है ग़ज़ल देखिए ख़ुश हों कि न हों
कुछ खटकते हुए अल्फ़ाज़ नज़र आते हैं

परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़




चुभेंगे ज़ीरा-हा-ए-शीशा-ए-दिल दस्त-ए-नाज़ुक में
सँभल कर हाथ डाला कीजिए मेरे गरेबाँ पर

परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़




देखने वाले ये कहते हैं किताब-ए-दहर में
तू सरापा हुस्न का नक़्शा है मैं तस्वीर-ए-इश्क़

परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़