देखने वाले ये कहते हैं किताब-ए-दहर में
तू सरापा हुस्न का नक़्शा है मैं तस्वीर-ए-इश्क़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
दिलवाइए बोसा ध्यान भी है
इस क़र्ज़ा-ए-वाजिब-उल-अदा का
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
आबदीदा हो के वो आपस में कहना अलविदा'अ
उस की कम मेरी सिवा आवाज़ भर्राई हुई
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
फ़र्क़ क्या मक़्तल में और गुलज़ार में
ढाल में हैं फूल फल तलवार में
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
गर आप पहले रिश्ता-ए-उल्फ़त न तोड़ते
मर मिट के हम भी ख़ैर निभाते किसी तरह
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
हवा में जब उड़ा पर्दा तो इक बिजली सी कौंदी थी
ख़ुदा जाने तुम्हारा परतव-ए-रुख़्सार था क्या था
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
होती न शरीअ'त में परस्तिश कभी ममनूअ
गर पहले भी बुतख़ानों में होते सनम ऐसे
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
इक अदना सा पर्दा है इक अदना सा तफ़ावुत
मख़्लूक़ में माबूद में बंदे में ख़ुदा में
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
जाँ घुल चुकी है ग़म में इक तन है वो भी मोहमल
मअ'नी नहीं हैं बिल्कुल मुझ में अगर बयाँ हूँ
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़