गर्मी सी ये गर्मी है
माँग रहे हैं लोग पनाह
उबैद सिद्दीक़ी
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मैं बस ये कह रहा हूँ रस्म-ए-वफ़ा जहाँ में
बिल्कुल नहीं मिटी है कमयाब हो गई है
उबैद सिद्दीक़ी
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मैं पहले बे-बाक हुआ था जोश-ए-मोहब्बत में
मेरी तरह फिर उस ने भी शरमाना छोड़ा था
उबैद सिद्दीक़ी
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उदासी आज भी वैसी है जैसे पहले थी
मकीं बदलते रहे हैं मकाँ नहीं बदला
उबैद सिद्दीक़ी
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