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ज़मीन बार-हा बदली ज़माँ नहीं बदला | शाही शायरी
zamin bar-ha badli zaman nahin badla

ग़ज़ल

ज़मीन बार-हा बदली ज़माँ नहीं बदला

उबैद सिद्दीक़ी

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ज़मीन बार-हा बदली ज़माँ नहीं बदला
इसी लिए तो ये मेरा जहाँ नहीं बदला

न आरज़ू कोई बदली न मेरी महरूमी
बदल गया है रवैया समाँ नहीं बदला

उदासी आज भी वैसी है जैसे पहले थी
मकीं बदलते रहे हैं मकाँ नहीं बदला

कभी चराग़ कभी दिल जला के देख लिया
ज़रा सा रंग तो बदला धुआँ नहीं बदला

परिंदे अब भी चहकते हैं गुल महकते हैं
सुना है कुछ भी अभी तक वहाँ नहीं बदला

दिलों का दर्द किसी तौर कम नहीं होगा
अगर तसव्वुर-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ नहीं बदला