हसरत-ए-मौसम-ए-गुलाब हूँ मैं
सच न हो पाएगा वो ख़्वाब हूँ मैं
नीना सहर
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कैसे होती है शब की सहर देखते
काश हम भी कभी जाग कर देखते
नीना सहर
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कल तिरे एहसास की बारिश तले
मेरा सूना-पन नहाया देर तक
नीना सहर
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मारो पत्थर भी तो नहीं हिलता
जम चुका है अब इस क़दर पानी
नीना सहर
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मिरी प्यास का तराना यूँ समझ न आ सकेगा
मुझे आज सुन के देखो मिरी ख़ामोशी से आगे
नीना सहर
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तिरे वजूद को छू ले तो फिर मुकम्मल हो
भटक रही है ख़ुशी कब से दर-ब-दर मुझ में
नीना सहर
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ज़ख़्म भी अब हसीन लगते हैं
तेरे हाथों फ़रेब खाने पर
नीना सहर
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