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कोई मो'जिज़ा हुआ है मिरी बे-ख़ुदी से आगे | शाही शायरी
koi moajiza hua hai meri be-KHudi se aage

ग़ज़ल

कोई मो'जिज़ा हुआ है मिरी बे-ख़ुदी से आगे

नीना सहर

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कोई मो'जिज़ा हुआ है मिरी बे-ख़ुदी से आगे
तेरा ग़म निकल गया है मिरी हर ख़ुशी से आगे

मिरी प्यास का तराना यूँ समझ न आ सकेगा
मुझे आज सुन के देखो मिरी ख़ामोशी से आगे

मैं हूँ साँस साँस तन्हा मैं हूँ ज़र्रा ज़र्रा घायल
मुझे पास आ के देखो मिरी दिलकशी से आगे

वहीं कल भी फिर मिलेंगे जहाँ आज मिल रहे हैं
तेरी रौशनी के पीछे मिरी तीरगी से आगे

इसी डर से पढ़ न पाई मैं तिरा पयाम जानाँ
कहीं दिल को छू न जाए मिरी बेबसी से आगे