क्या करिश्मा था ख़ुदाया देर तक
ख़ुद को खो कर ख़ुद को पाया देर तक
छू के लौटा जब तुझे मेरा ख़याल
होश में वापस न आया देर तक
कल कोई झोंका हवा का छू गया
और फिर तू याद आया देर तक
हम तिरी आग़ोश में थे रात भर
''माह-ए-कामिल मुस्कुराया देर तक''
कल तिरे एहसास की बारिश तले
मेरा सूना-पन नहाया देर तक
सुन के भीगी रात की सरगोशियाँ
इक कुँवारा-पन लजाया देर तक
ग़ज़ल
क्या करिश्मा था ख़ुदाया देर तक
नीना सहर