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क्या करिश्मा था ख़ुदाया देर तक | शाही शायरी
kya karishma tha KHudaya der tak

ग़ज़ल

क्या करिश्मा था ख़ुदाया देर तक

नीना सहर

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क्या करिश्मा था ख़ुदाया देर तक
ख़ुद को खो कर ख़ुद को पाया देर तक

छू के लौटा जब तुझे मेरा ख़याल
होश में वापस न आया देर तक

कल कोई झोंका हवा का छू गया
और फिर तू याद आया देर तक

हम तिरी आग़ोश में थे रात भर
''माह-ए-कामिल मुस्कुराया देर तक''

कल तिरे एहसास की बारिश तले
मेरा सूना-पन नहाया देर तक

सुन के भीगी रात की सरगोशियाँ
इक कुँवारा-पन लजाया देर तक