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मिस्दाक़ आज़मी शायरी | शाही शायरी

मिस्दाक़ आज़मी शेर

5 शेर

ऐ मिरे मूनिस ओ ग़म-ख़्वार मुझे मरने दे
बात अब हुक्म की तामील तक आ पहुँची है

मिस्दाक़ आज़मी




फ़क़त मिलना-मिलाना कम हुआ है
हमारी दोस्ती टूटी नहीं है

मिस्दाक़ आज़मी




ग़ार वालों की तरह निकला है वो कमरे से आज
उस को इस दुनिया की तब्दीली का अंदाज़ा नहीं

मिस्दाक़ आज़मी




इक तबस्सुम का भरम आबाद होंटों पर किए
जी रहे हैं लोग अपनी अपनी वीरानी के साथ

मिस्दाक़ आज़मी




ख़ुशनुमा मंज़र भी सब धुंधले नज़र आते हैं यार
जब दिलों में भी उतर जाती है सहराओं की ख़ाक

मिस्दाक़ आज़मी