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वक़्त के ज़ालिम समुंदर में परेशानी के साथ | शाही शायरी
waqt ke zalim samundar mein pareshani ke sath

ग़ज़ल

वक़्त के ज़ालिम समुंदर में परेशानी के साथ

मिस्दाक़ आज़मी

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वक़्त के ज़ालिम समुंदर में परेशानी के साथ
डूब जाता है कोई क्यूँ इतनी आसानी के साथ

मेरी साँसों की महक का भी बहुत चर्चा हुआ
रात जब मैं ने गुज़ारी रात की रानी के साथ

मैं वही हूँ और मेरा मर्तबा मुझ से बुलंद
नाम अपना ले रहा हूँ मैं भी हैरानी के साथ

मैं ने तो कुछ आस्तीं के साँप गिनवाए थे बस
तुम ने क्यूँ आँखें मिलाई हैं पशेमानी के साथ

कर्बला वाले अगर हैं मोहतरम तो मोहतरम
नोश मत जाम-ए-शहादत कीजिए पानी के साथ

इक तबस्सुम का भरम आबाद होंटों पर किए
जी रहे हैं लोग अपनी अपनी वीरानी के साथ

मर गया 'मिस्दाक़' भी सुल्तान-टीपू की तरह
देख कर हमराज़ अपना दुश्मन-ए-जानी के साथ