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तअल्लुक़ की कड़ी टूटी नहीं है | शाही शायरी
talluq ki kaDi TuTi nahin hai

ग़ज़ल

तअल्लुक़ की कड़ी टूटी नहीं है

मिस्दाक़ आज़मी

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तअल्लुक़ की कड़ी टूटी नहीं है
उमीद-ए-ज़िंदगी टूटी नहीं है

फ़क़त मिलना-मिलाना कम हुआ है
हमारी दोस्ती टूटी नहीं है

बड़ी आँधी चली है इस चमन में
मगर कोई कली टूटी नहीं है

कमंदें फेंकिए अक़्ल ओ ख़िरद की
फ़सील-ए-आगही टूटी नहीं है

पुराने बाँस के पुल की हमारे
कोई भी आस अभी टूटी नहीं है

सुना है बावजूद-ए-ज़ोर हम ने
धनक रावण से भी टूटी नहीं है