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किश्वर नाहीद शायरी | शाही शायरी

किश्वर नाहीद शेर

17 शेर

आँख की पुतली सब कुछ देखे देखे न अपनी ज़ात
उजला धागा मैला होवे लगें जो मैले हात

किश्वर नाहीद




अपनी बे-चेहरगी छुपाने को
आईने को इधर उधर रक्खा

किश्वर नाहीद




भूल जाओगे कि रहते थे यहाँ दूसरे लोग
कल फिर आबाद करेंगे ये मकाँ दूसरे लोग

किश्वर नाहीद




दिल को भी ग़म का सलीक़ा न था पहले पहले
उस को भी भूलना अच्छा लगा पहले पहले

किश्वर नाहीद




दिल में है मुलाक़ात की ख़्वाहिश की दबी आग
मेहंदी लगे हाथों को छुपा कर कहाँ रक्खूँ

किश्वर नाहीद




हमें अज़ीज़ हैं इन बस्तियों की दीवारें
कि जिन के साए भी दीवार बनते जाते थे

किश्वर नाहीद




हमें देखो हमारे पास बैठो हम से कुछ सीखो
हमीं ने प्यार माँगा था हमीं ने दाग़ पाए हैं

किश्वर नाहीद




जवान गेहूँ के खेतों को देख कर रो दें
वो लड़कियाँ कि जिन्हें भूल बैठीं माएँ भी

किश्वर नाहीद




कौन जाने कि उड़ती हुई धूप भी
किस तरफ़ कौन सी मंज़िलों में गई

किश्वर नाहीद