इश्क़ की गुम-शुदा मंज़िलों में गई
ज़िंदगी लौट कर दलदलों में गई
यास-ओ-हसरत भरी बे-अमाँ ज़िंदगी
आस के रेशमी आँचलों में गई
वो सदा जो फ़ुग़ाँ बन के उट्ठी मगर
ख़ामुशी के घने जंगलों में गई
तुम से हो कर जुदा यक-नफ़स दोस्तो
ज़िंदगी मरघटों दलदलों में गई
कौन जाने कि उड़ती हुई धूप भी
किस तरफ़ कौन सी मंज़िलों में गई
सुब्ह-दम रंग निखरा हर इक शाख़ का
रौशनी शबनमी कोंपलों में गई
ग़ज़ल
इश्क़ की गुम-शुदा मंज़िलों में गई
किश्वर नाहीद