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ख़ालिद मुबश्शिर शायरी | शाही शायरी

ख़ालिद मुबश्शिर शेर

5 शेर

दश्त-ए-जुनूँ से आ गए शहर-ए-ख़िरद में हम
दिल को मगर ये सानेहा अच्छा नहीं लगा

ख़ालिद मुबश्शिर




कहीं राँझा, कहीं मजनूँ हुआ
वजूद-ए-इश्क़ आलमगीर है

ख़ालिद मुबश्शिर




मिरी वहशतों का सबब कौन समझे
कि मैं गुम-शुदा क़ाफ़िला चाहता हूँ

ख़ालिद मुबश्शिर




मुझे शक है होने न होने पे 'ख़ालिद'
अगर हूँ तो अपना पता चाहता हूँ

ख़ालिद मुबश्शिर




टपक के दीदा-ए-नम से सदाएँ देता है
जो एक हर्फ़-ए-तमन्ना दिल-ए-तबाह में था

ख़ालिद मुबश्शिर