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अनासिर की घनी ज़ंजीर है | शाही शायरी
anasir ki ghani zanjir hai

ग़ज़ल

अनासिर की घनी ज़ंजीर है

ख़ालिद मुबश्शिर

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अनासिर की घनी ज़ंजीर है
सो ये हस्ती की इक ताबीर है

मिला विर्से में दर्द-ए-दिल मुझे
ये मेरे बाप की जागीर है

पिघल जाएगा पर्बत संग क्या
मिरी आहों में वो तासीर है

कहीं राँझा, कहीं मजनूँ हुआ
वजूद-ए-इश्क़ आलमगीर है

वही परवेज़ की शर्तें हनूज़
वही तेशा है, जू-ए-शीर है

सुरूर ओ ग़म है क्या 'ख़ालिद'-मियाँ
किताब-ए-ज़ीस्त की तफ़्सीर है