अनासिर की घनी ज़ंजीर है
सो ये हस्ती की इक ताबीर है
मिला विर्से में दर्द-ए-दिल मुझे
ये मेरे बाप की जागीर है
पिघल जाएगा पर्बत संग क्या
मिरी आहों में वो तासीर है
कहीं राँझा, कहीं मजनूँ हुआ
वजूद-ए-इश्क़ आलमगीर है
वही परवेज़ की शर्तें हनूज़
वही तेशा है, जू-ए-शीर है
सुरूर ओ ग़म है क्या 'ख़ालिद'-मियाँ
किताब-ए-ज़ीस्त की तफ़्सीर है

ग़ज़ल
अनासिर की घनी ज़ंजीर है
ख़ालिद मुबश्शिर