EN اردو
ख़ालिद मलिक साहिल शायरी | शाही शायरी

ख़ालिद मलिक साहिल शेर

19 शेर

बाज़ औक़ात तिरा नाम बदल जाता है
बाज़ औक़ात तिरे नक़्श भी खो जाते हैं

ख़ालिद मलिक साहिल




बस एक ख़ौफ़ था ज़िंदा तिरी जुदाई का
मिरा वो आख़िरी दुश्मन भी आज मारा गया

ख़ालिद मलिक साहिल




चमक रहे थे अंधेरे में सोच के जुगनू
मैं अपनी याद के ख़ेमे में सो नहीं पाया

ख़ालिद मलिक साहिल




दुनिया से दूर अपने बराबर खड़े रहे
ख़्वाबों में जागते थे मगर रात हो गई

ख़ालिद मलिक साहिल




गुज़र रही है जो दिल पर वही हक़ीक़त है
ग़म-ए-जहाँ का फ़साना ग़म-ए-हयात से पूछ

ख़ालिद मलिक साहिल




हम लोग तो अख़्लाक़ भी रख आए हैं 'साहिल'
रद्दी के इसी ढेर में आदाब पड़े थे

ख़ालिद मलिक साहिल




इस शहर के लोगों पे भरोसा नहीं करना
ज़ंजीर कोई दर पे लगाओ कि चला मैं

ख़ालिद मलिक साहिल




इस तिश्ना-लबी पर मुझे एज़ाज़ तो बख़्शो
ऐ बादा-कशो जाम उठाओ कि चला मैं

ख़ालिद मलिक साहिल




जवाब जिस का नहीं कोई वो सवाल बना
मैं ख़्वाब में उसे देखूँ कोई ख़याल बना

ख़ालिद मलिक साहिल