तू तिश्नगी की अज़िय्यत कभी फ़ुरात से पूछ
अँधेरी रात की हसरत अँधेरी रात से पूछ
गुज़र रही है जो दिल पर वही हक़ीक़त है
ग़म-ए-जहाँ का फ़साना ग़म-ए-हयात से पूछ
मैं अपने आप में बैठा हूँ बे-ख़बर तो नहीं
नहीं है कोई तअल्लुक़ तो अपनी ज़ात से पूछ
दुखी है शहर के लोगों से बद-मिज़ाज बहुत
जो पूछना है मोहब्बत से एहतियात से पूछ
तू अपनी ज़ात के अंदर भी झाँक ले 'साहिल'
ज़मीं का भेद किसी रोज़ काएनात से पूछ
ग़ज़ल
तू तिश्नगी की अज़िय्यत कभी फ़ुरात से पूछ
ख़ालिद मलिक साहिल