ऐ मसीहा कभी तू भी तो उसे देखने आ
तेरे बीमार को सुनते हैं कि आराम नहीं
कौसर नियाज़ी
अपने वहशत-ज़दा कमरे की इक अलमारी में
तेरी तस्वीर अक़ीदत से सजा रक्खी है
कौसर नियाज़ी
बर-सर-ए-आम इक़रार अगर ना-मुम्किन है तो यूँही सही
कम-अज़-कम इदराक तो कर ले गुन बे-शक मत मान मिरे
कौसर नियाज़ी
बे-सबब आज आँख पुर-नम है
जाने किस बात का मुझे ग़म है
कौसर नियाज़ी
चंद लम्हों के लिए एक मुलाक़ात रही
फिर न वो तू न वो मैं और न वो रात रही
कौसर नियाज़ी
हाल-ए-दिल उस को सुना कर है बहुत ख़ुश 'कौसर'
लेकिन अब सोच ज़रा क्या तिरी औक़ात रही
कौसर नियाज़ी
हर मरहला-ए-ग़म में मिली इस से तसल्ली
हर मोड़ पे घबरा के तिरा नाम लिया है
कौसर नियाज़ी
जज़्बात में आ कर मरना तो मुश्किल सी कोई मुश्किल ही नहीं
ऐ जान-ए-जहाँ हम तेरे लिए जीना भी गवारा करते हैं
कौसर नियाज़ी
मंजधार में नाव डूब गई तो मौजों से आवाज़ आई
दरिया-ए-मोहब्बत से 'कौसर' यूँ पार उतारा करते हैं
कौसर नियाज़ी